संविधान संसोधन बिल पर रितोब्रता

6 मई 2015 को 119वे संसोधन पर
 
आज जब मै अपनी पार्टी की तरफ से इस बिल के समर्थन में खड़ा हुआ हूँ तो यह कहना चाहता हूँ की आज बांग्लादेश में रह रहे 15 करोड़ बंगाली समुदाय के लोगो के अलावा परिवृति में रह रहे 1.5 करोड़ लोगों की भी नज़र आज हम पर है । इन परिवृति में रह रहे लोगो की स्थिति दयनीय है और वे कहीं के निवासी नहीं रह गए हैं । न ही उनके पास जीवन जीने के लिए मूलभूत संसाधन है और न ही कोई राष्ट्रीय पहचान ।
 
1990 में जब मैं पांचवी क्लास का विद्यार्थी था तब मैंने पहली बार “चित्महल “ जो परिवृति का बंगाली शब्द है, सुना था इन जगहों पर ऐसी कोई सीमा रेखा नहीं है जो इन्हें बांग्लादेश और बंगाल में रह रहे लोगो से अलग करे । दोनों जगह समुदायों का खान-पान  और संस्कृति एक ही जैसी है और सबसे अहम् बात यह है कि भाषा भी एक है । बस एक ही फर्क है और वो है “विदेशी ज़मीन” का ।
इन जगहों पर रह रहे लोग पहचान का संकट झेल रहे हैं क्योंकि हैं तो वे बांग्लादेश के पर स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस हिन्दुस्तान का मनाते हैं ।
यहाँ रह रहे लोग रोज़ खतरनाक घटनाओं का सामना करते हैं। उन्हें डर रहता है कि कभी भी उन्हें भारतीय सीमा सुरक्षा बल के लोग बंगलादेशी समझ कर गिरफ्तार कर सकते हैं जबकि बांग्लादेश उन्हें अपना नागरिक नहीं मानता।
इन कॉलोनियों में मूलभूत सुविधाएँ भी नहीं है। बच्चों को स्कूल जाने के लिए हिन्दुस्तान आना पड़ता है और वह भी तब ही संभव है जब इस तरफ कोई उनका अभिवावक बनने के लिए राज़ी हो। उधर न ही अस्पताल हैं। गर्भवती महिलाओं को खासकर सबसे ज्यादा दिक्कत होती है क्योंकि भारतीय अस्पताल उन्हें दाखिल करने से मना करते हैं। अगर किसी तरह डॉक्टर मान भी जाए तो उन्हें जन्म प्रमाण पत्र नहीं मिलता।
 
इन कॉलोनियों में मुख्यतः मुसलमान समुदाय के लोग हैं जिनके पास नमाज़ अदा करने के लिए कोई जगह नहीं है। प्रशासन, ज़िम्मेदारी और न्याय नाम की कोई भी चीज़ यहाँ नहीं पाई जाती । सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि यहाँ गांजे जैसे नशीले पदार्थ खुले तौर पर पैदा किए जा रहे। साथ ही किसी भी न्यायपालिका के न होने से असंवैधानिक तत्वों की मात्रा में भारी बढोतरी पाई गई है।
यह कॉलोनियां आज भी एक जटिल और पेंचदार पहेली बनी हुई है।
इलाकों की इस अदला-बदली में असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय और त्रिपुरा की सीमायें प्रभावित होंगी। इस समझौते को अभी लागू नहीं किया गया है। 
इस समझौते से भारत की सीमाओं में न केवल शान्ति कायम होगी बल्कि इन कॉलोनियों में रह रहे लोगों के जीवन में बदलाव आएगा जो अनेक वर्षों से बिना किसी राष्ट्रीय पहचान के नारकीय जीवन जी रहे हैं।
अगर इस समझौते पर गौर किया जाए तो भारत जो ज़मीन देगा और इसके बदले उसे जो ज़मीन मिलेगी, उसमे 10,000 एकड़ का अंतर है। वैसे देखा जाए तो यह नुकसान का सौदा है पर इसमें मानवता का फायदा है और उसी की जीत है।
मैं खुद एक रिफ्यूजी परिवार से हूँ। मेरे पिता 1946 में यहाँ आए थे और अनेक परिवारों की तरह कलकत्ता के अगल बगल बस गए।  मेरा जन्म 1971 में नहीं हुआ था पर रिफ्यूजी कॉलोनियों को देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बांग्लादेश की आज़ादी के लिए हुई जंग के समय हालात क्या थे। बांग्लादेश के लोग न तो इंदिरा गाँधी द्वारा की गई मदद भूले हैं और न ही इस होने वाले समझौते को भूलेंगे।
आज जो हमें मौका मिला है, यह ऐतिहासिक है जिसमे केवल मानवता की जीत होगी।
मैं इस बिल का समर्थन करता हूँ।