कामरेड विजेंद्र शर्मा की पहली बरसी पर यादगार सभा - राजेंद्र शर्मा

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कामरेड विजेंद्र शर्मा की पहली बरसी पर यादगार सभा
 
‘आज जब शिक्षा तथा संस्कृति पर पहले से जारी नवउदारवादी हमले के ऊपर से सांप्रदायिक हमला और हो रहा है, कामरेड विजेंद्र शर्मा की कमी और भी खल रही है, जिनकी शिक्षा के क्षेत्र में सामने आ रही चुनौतियों की असाधारण रूप से गहरी समझ ही नहीं थी, जो इस समझ को आंदोलन के नारों तक पहुंचाना भी जानते थे।’ सी पी आइ (एम) महासचिव, सीताराम येचुरी ने कामरेड विजेंद्र शर्मा की पहली बरसी पर आयोजित एक ‘‘यादगार सभा’’ में उनके विशिष्ट योगदान को याद करते हुए यह बात कही। येचुरी ने 1986 में ‘नयी शिक्षा नीति’ के नाम पर, देश में दो तरह की शिक्षा व्यवस्थाएं--एक संपन्नों के लिए विशेष-सुविधासंपन्न उम्दा व्यवस्था तथा दूसरी, बाकी अवाम के लिए सस्ती व कामचलाऊ सुदूर शिक्षा--शुरू किए जाने तथा इसके लिए बड़े पैमाने पर उच्च शिक्षा के निजीकरण के दरवाजे खोले जाने के समय से ही, शिक्षा के क्षेत्र में आ रही चुनौतियों को पहचानने, उनके खिलाफ आंदोलन की मांगें सूत्रबद्घ करने में, कामरेड विजेंद्र के साथ अपने सहयोग और उनकी भूमिका की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने यह भी कहा कि उसके बाद गुजरे लगभग तीन दशकों में विशेष रूप से उच्च शिक्षा के प्रश्नों पर पार्टी ने ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया होगा, जिसमें कामरेड विजेंद्र से किसी न किसी रूप में राय-मशविरा नहीं हुआ हो।
          नई-दिल्ली स्थित बी टी आर भवन के सभागार में 9 अगस्त को सी पी आइ (एम) की दिल्ली राज्य कमेटी द्वारा आयोजित सभा को संबोधित करते हुए येचुरी ने आज की राजनीतिक चुनौतियों के संदर्भ में शिक्षा के क्षेत्र में नवउदारीकरण तथा संप्रदायीकरण की चुनौतियों को विशेष रूप से रेखांकित किया। इस संदर्भ में उन्होंने इस तथ्य की ओर विशेष रूप से ध्यान खींचा कि उच्च शिक्षा का बढ़ता हुआ निजीकरण, छात्रों की बढ़ती हुई संख्या को और वास्तव में अपेक्षाकृत ज्यादा प्रतिभाशाली छात्रों की बढ़ती हुई संख्या को, छात्र संघ आदि की गतिविधियों और छात्र आंदोलन के दायरे से ही बाहर कर, उनके बीच राजनीतिक चेतना के निर्माण के सारे रास्ते ही बंद कर रहा है। येचुरी ने याद दिलाया कि यह नवउदारीकरण की नीतियों से जुड़ा हुआ वैश्विक फिनामिना है, जो मौजूदा व्यवस्था को चुनौती देने वाली आवाजों को कमजोर कर के, वस्तुगत रूप से मौजूदा व्यवस्था को ही मजबूत करता है। उन्होंने छात्रों के उक्त समूह तक पहुंचने के सांगठनिक तरीके निकालने की जरूरत रेखांेिकत करते हुए उम्मीद जतायी कि पार्टी के प्रस्तावित सांगठनिक प्लेनम में कुछ सार्थक उपाय निकाले जा सकेंगे। अंत में येचुरी ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दिखाई देने लगे, आने वाले बड़े संकट के संकेत के रूप में विभिन्न राज्यों की हजारों की संख्या में इंजीनियरिंग की सीटें खाली रह जाने के फिनामिना की ओर भी ध्यान खींचा।
          इससे पहले, यादगार सभा को संबोधित करते हुए, सी पी आइ (एम) केंद्रीय सेक्रेटेरियट सदस्य, नीलोत्पल बसु ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में तथा शिक्षक आंदोलन में काम के क्रम में कामरेड विजेंद्र के साथ अपने सहयोग-सहकार की चर्चा की। उन्होंने बताया कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पार्टी की अखिल भारतीय नीति तय करने में कामरेड विजेंद्र की भूमिका के साथ ही, विश्वविद्यालय व कॉलेज शिक्षक आंदोलन को दिशा देने में तथा आइफुक्टो व फेडकुटा के बीच सहयोग के रिश्ते विकसित करने में भी कामरेड विजेंद्र ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। पार्टी केंद्रीय कमेटी सदस्य, पी एम एस ग्रेवाल ने अपने संक्षिप्त संबोधन में, पार्टी के एक नेता के रूप में कामरेड विजेंद्र की भूमिका को रेखांेिकत किया जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की अध्यक्ष, नंदिता नारायण ने दिल्ली विश्वविद्यालय में और देश के पैमाने पर भी, शिक्षक आंदोलन में कामरेड विजेंद्र के योगदान की चर्चा की। सी पी आइ (एम) के दिल्ली राज्य सचिव, के एम तिवारी ने सभा का संचालन किया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया। बिछुड़े साथी की याद में एक मिनट का मौन रखने के साथ सभा समाप्त हुई। पोलट ब्यूरो सदस्य, हन्नान मौल्ला भी सभा के मंच पर थे। सभा में पार्टी कार्यकर्ताओं तथा कामरेड विजेंद्र शर्मा के परिजनों के अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों की उपस्थिति विशेष रूप से उल्लेखनीय थी।