पोलिट ब्यूरो ने कहा बिहार के विधानसभा चुनाव में जनता आरएसएस-भाजपा को करारी शिकस्त देगी

Date: 
Tuesday, September 29, 2015

पोलिट ब्यूरो ने कहा बिहार के विधानसभा चुनाव में जनता आरएसएस-भाजपा को करारी शिकस्त देगी
 
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) के पोलिट ब्यूरो की बैठक 26 और 27 सितंबर को नई-दिल्ली में संपन्न हुई। बैठक के बाद निम्रलिखित वक्तव्य जारी किया गया:
 
संगठन पर प्लेनम
 
            सांगठनिक प्लेनम के लिए, जो 27 से 31 दिसंबर 2015 तक (एक दिन का विस्तार नोट करें) कोलकाता में होने जा रहा है, पोलिट ब्यूरो ने रिपोर्ट तथा प्रस्ताव की अंतर्वस्तु की मोटी रूपरेखा पर चर्चा की।
            पार्टी केंद्र द्वारा राज्य कमेटियों को भेजी गयी विस्तृत प्रश्नावली के उत्तर केंद्र को मिल गए हैं और प्लेनम के लिए तैयार किए जाने वाले दस्तावेजों में इन्हें भी शामिल किया जाएगा। प्लेनम के दस्तावेजों को अंतिम रूप देने के लिए पोलिट ब्यूरो की अगली बैठक 28 तथा 29 अक्टूबर को होगी और केंद्रीय कमेटी की बैठक 13 से 16 नवंबर तक (नयी तिथियां नोट करें) होगी।
 
आरक्षण के प्रश्न पर आरएसएस-भाजपा का रुख
 
            संविधान के निर्देश के अनुरूप अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्ग के लिए इस समय लागू आरक्षणों के खिलाफ आरएसएस प्रमुख द्वारा बार-बार किए गए हमलों की पोलिट ब्यूरो ने भत्र्सना की। आरएसएस प्रमुख ने अब इस पर जोर दिया है कि आरक्षण कोटों की समीक्षा करने की जरूरत है ताकि यह तय किया जा सके कि किन श्रेणियों को आरक्षण देने की जरूरत है और कब तक। उन्होंने इस मुद्दे पर निर्णय करने के लिए एक स्वतंत्र आयोग के गठन की मांग की है। उन्होंने, अपने उक्त बयान के खिलाफ देशभर में आयी प्रतिक्रिया के जवाब में अपने उक्त दावे को दोहराया। संघ प्रमुख के उक्त बयान को व्यापक पैमाने पर तथा उचित ही इसकी कोशिश के रूप में लिया गया है कि आरक्षणों को ही खत्म किया जाए और इस तरह, सामाजिक न्याय स्थापित करने के लिहाज से देश ने जो भी थोड़ा बहुत हासिल किया है, उसे भी कमजोर किया जाए।
            उधर बिहार के चुनाव में भाजपा खुद को अन्य पिछड़ा वर्ग के झंडाबरदार के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है और उसने समाज के कुछ हाशिए पर पड़े तथा सामाजिक रूप से उत्पीडि़त तबकों के कुछ प्रतिनिधियों के साथ जोड़-गांठकर एक गठजोड़ खड़ा किया है।
            बहरहाल भाजपा, जिसने हाल ही में बार-बार, आरएसएस के राजनीतिक बाजू के रूप में अपनी भूमिका की पुष्टिï ही की है, इस मामले मेंं आरएसएस के फरमान को ही लागू करने वाली है।
            बिहार के विधानसभाई चुनाव के लिए, सामाजिक इंजीनियरिंग की नाति-चतुर कोई की जा रही लगती है। एक ओर आरएसएस के रुख के जरिए, उच्च जातीय समर्थन को पुख्ता करने की कोशिश की जा रही है और दूसरी ओर, भाजपा के चुनावी गठजोड़ तथा दिखावों के जरिए अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा अन्य पिछड़े तबकों को प्रभावित करने की कोशिशें की जा रही हैं। ऐसे जघन्य ‘‘श्रम विभाजन’’ की रणनीति को, जनता अवश्य शिकस्त देगी।
            पोलिट ब्यूरो को यकीन है कि बिहार की जनता इस शरारतपूर्ण कुचाल को पकड़ लेगी और बिहार के विधानसभाई चुनाव में आरएसएस-भाजपा को जोरदार शिकस्त देगी।
 
बढ़ता सांप्रदायिक हमला
 
            पोलिट ब्यूरो ने देश भर से आ रही सांप्रदायिक धु्रवीकरण बढ़ाने की कोशिशों की और खासतौर पर बिहार में विधानसभा चुनाव की पूर्वसंध्या में ऐसी कोशिशों की बढ़ती हुई खबरों को गहरी चिंता के साथ दर्ज किया। उत्तरी भारत के विभिन्न हिस्सों से तीखे होते सांप्रदायिक तनावों की खबरें आ रही हैं।
            इसके साथ ही साथ, इतिहास का पुनर्लेखन करने की और शैक्षणिक शोध की सभी प्रमुख संस्थाओं में आरएसएस के लोगों को भरने की भाजपायी सरकार की कोशिशें, एक नये हमलावर तरीके से आगे बढ़ रही हैं। इतिहास का पुनर्लेखन हो रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय ने तथाकथित विद्वानों के एक सम्मेलन की मेजबानी की है, जिन्होंने यह एलान किया है कि अब तक कठोर वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर वैदिक युग का जो समय स्थापित था, उसे अब 6,000 वर्ष पीछे खिसकाया जा रहा है। यह, इस झूठ को साबित करने की धोखाधड़ीपूर्ण कसरत है कि आर्यों का मूल भारत में ही है और अकेले वे ही यहां के मूल निवासी हैं।
            साफ है भाजपा की यह सरकार उन्मादपूर्ण हड़बड़ी में भारतीय इतिहास की जगह पर ङ्क्षहदू मिथकों को और भारत के समृद्घ दर्शन की जगह पर हिंदू-धर्मशास्त्र को बैठाने में लगी हुई है।
            पोलिट ब्यूरो ने सी पी आइ (एम) की सभी इकाइयों का आह्वïान किया है कि सांप्रदायिक हमले के खिलाफ देशव्यापी अभियान संगठित करें। सी पी आइ (एम), धर्मनिरपेक्ष ताकतों से तथा मिली-जुली सभ्यता के मानस की हमारी विरासत की कद्र करने वाले देश के सभी तत्वों से अपील करती है कि बढक़र आगे आएं और एकजुट होकर इन सभी साजिशों को विफल करें।
 
जनता पर बढ़ता बोझ
 
            पोलिट ब्यूरो ने चिंता के साथ दर्ज किया कि जनता पर आर्थिक बोझ लगातार बढ़ाए जा रहे हैं। कीमतों में बढ़ोतरी लगातार लोगों को पीस रही है। अब दाल, जोकि हमारी जनता के लिए प्रोटीन का मुख्य स्रोत है, इतने ऊंचे दाम पर बिक रही है कि आम लोगों की और यहां तक कि अनेक मध्यवर्गीय परिवारों की भी पहुंच से ही बाहर हो गयी है।
            इस भाजपा सरकार तथा प्रधानमंत्री मोदी द्वारा बड़े धूम-धड़ाके के साथ घोषित की गयी तमाम आर्थिक नीतियों और नारों से, देश में आर्थिक वृद्घि में कोई बहाली नहीं आयी है। उल्टे, सरकारी आंकड़ों में हेर-फेर किए जाने के बावजूद, औद्योगिक स्तर पर उछाल दिखाई ही नहीं दे रहा है। इसके चलते, बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है।
            कृषि संकट का गहरे से गहरा होना जारी है। इस साल बारिश कम रहने से किसानों की तकलीफ ही बढ़ी है और इसके चलते ग्रामीण भारत में पस्तहिम्मती बढ़ रही है। उन इलाकों से भी, जिनके बारे में अब तक यह माना जा रहा था कि कृषि संकट से उबर चुके हैं, किसानों की आत्महत्या की खबरें आना जारी है।
            इसी पृष्ठïभूमि में, मनरेगा जैसी योजनाओं के जरिए हमारी जनता के विशाल हिस्से को जो मामूली राहत मिल भी रही थी, उसमें भी भारी कमी की जा रही है। इन योजनाओं के लिए केंद्र सरकार द्वारा पर्याप्त वित्तीय आवंटन नहीं किया जा रहा है। ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम के लाभार्थियों को भी अब हताशा के गड्ढïे में धकेला जा रहा है और उनके बीच से भी आत्महत्या की खबरें आ रही हैं। हमारे देश में ग्रामीण बदहाली में ऐसी बढ़ोतरी हो रही है।
            सी पी आइ (एम) का पोलिट ब्यूरो, देश भर की अपनी सभी इकाइयों का आह्वïान करता है कि केंद्र सरकार की मौजूदा नीतियों के खिलाफ और अपनी-अपनी राज्य सरकारों के खिलाफ भी, जोकि जनता की आर्थिक तकलीफें और बढ़ा रही हैं, विरोध आंदोलन संगठित करें। सी पी आइ (एम) की इकाइयों को स्थानीय परिस्थितियों के हिसाब से तथा जनता के सामने उपस्थित सबसे ज्वलंत मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भाजपा की केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ जन-लामबंदियों का निर्माण करना चाहिए तथा उन्हें मजबूत करना चाहिए।
 
नेपाल का नया संविधान
 
            सी पी आइ (एम), नेपाल की संविधान सभा द्वारा प्रचंड बहुमत से एक संघीय, जनतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष संविधान के अपनाए जाने का स्वागत करती है। नेपाल अब एक गणराज्य बन गया है।
            भारत और नेपाल के बीच ऐतिहासिक रूप से बहुत घनिष्ठï, अच्छे पड़ौसियों वाले रिश्ते रहे हैं। सी पी आइ (एम) का हमेशा से यह मानना रहा है कि नेपाल के राजनीतिक ढांचे से संंबंधित सारे सवाल, नेपाल की जनता के संप्रभु अधिकार का विषय हैं। इस की रौशनी में सी पी आइ (एम), नेपाल के संविधान के अपनाए जाने के इस लंबे अर्से से प्रतीक्षित निर्णय के लिए नेपाल की जनता को और उसके प्रमुख राजनीतिक नेतृत्व को हार्दिक बधाइयां देती है। अपने देश में जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता तथा संघवाद की स्थापना के लिए नेपाल की जनता का सुदीर्घ तथा कठिन संघर्ष अपने फल तक पहुंचा है। राजशाही के उखाडक़र फैंके जाने के बाद, एक दशक से नेपाल की जनता इस संविधान पर बहस कर रही थी और अब अंतत: उसे स्वीकार किया गया है। सी पी आइ (एम), उनकी पूर्ण सफलता की कामना करती है।
            सी पी आइ (एम), नेपाल में इस ऐतिहासिक जनतांत्रिक प्रगति के संबंध में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इस सरकार द्वारा अपनाए गए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण पर हैरानी के साथ गौर करती है। आरएसएस-भाजपा हैरान हैं कि नेपाल ने खुद को एक ‘‘हिंदू राष्टï्र’’ घोषित करने की मांगों को ठुकरा दिया है। सी पी आइ (एम) केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह करती है कि भारत और नेपाल के बीच, देशों के स्तर पर और जनता के स्तर पर रिश्ते मजबूत हों और इस प्रक्रिया में कोई बाधा न डाली जाए।
 
अमरीकी दबाव के आगे मोदी का और समर्पण
 
            प्रधानमंत्री मीदो ने, जो इस समय अमरीका की यात्रा पर हैं, अमरीका के दबाव के सामने झुकते हुए, पर्यावरण परिवर्तन के मुद्दे पर भारत के रुख के साथ और समझौता कर लिया लगता है। पर्यावरण परिवर्तन पर विश्व वार्ताओं के पिछले दो दशकों के दौरान ‘‘साझा किंतु भिन्नीकृत जवाबदारी’’ का सिद्घांत स्थापित हुआ था, जो इस तथ्य को रेखांकित करता था कि चूंकि विकसित देशों ने पर्यावरण के विनाशकारी कार्बन उत्सर्जनों में सबसे योगदान किया है, उन्हें ही इन उत्सर्जनों को घटाने की कहीं ज्यादा जिम्मेदारी उठानी होगी। लेकिन, इस सिद्घांत का परित्याग करते हुए अमरीका ने अब इकतरफा तरीके से, कार्बन उत्सर्जनों में कटौती के इकतरफा लक्ष्यों की घोषणा कर दी है। इस तरह के दबाव का प्रतिरोध करने के बजाए, प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की ओर से स्वैच्छिक लक्ष्यों की ऐसी ही घोषणा का वचन दिया लगता है। इस तरह के लक्ष्यों को अब इंटेंडेड नेशनली डिटरमाइन्ड कंट्रीब्यूशन्स (आइ एन डी सीज़) का नाम दे दिया गया है। पुन:, प्रधानमंत्री मोदी ने इसका आग्रह भी छोड़ दिया लगता है कि पश्चिमी औद्योगीकृत देश उक्त वार्ताओं की संधियों के तहत अपनी इसकी जिम्मेदारियों को पूरा करे कि विकासशील देशों को वित्तीय संसाधन मुहैया कराएगा जिससे वे कहीं महंगी, ‘‘हरिततर प्रौद्योगिकियों’’ की ओर बढ़ सकें और बौद्घिक संपदा अधिकार की जिम्मेदारियों से अलग रखकर, इन देशों के लिए इस तरह की प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण को सुगम बनाएगा।
            प्रधानमंत्री मोदी के इस तरह अमरीकी दबाव के आगे समर्पण करने का गंभीर असर होगा। इसके चलते भारतीय जनता के विशाल बहुमत को ऊर्जा संसाधनों से वंचित रखा जा रहा होगा, जो सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए जरूरी हैं और सफाई तथा स्वच्छता जैसी फौरी जरूरतों के लिए के ऊर्जा मुहैया कराने के अलावा गरीबी घटाने के लिए बहुत ही जरूरी हैं।
            भाजपा की सरकार के इस मामले तक में अमरीकी साम्राज्यवादी दबाव के सामने घुटने टेकने की सी पी आइ (एम) पोलिट ब्यूरो तीव्र निंदा करता है।
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इकॉनमिक टाइम्स  के 15 सितंबर 2015 के अंक में प्रकाशित सोमनाथ चैटर्जी के साक्षात्कार की ओर पार्टी का ध्यान  खींचा गया है। इस साक्षात्कार में कांग्रेस के साथ सी पी आइ (एम) के रिश्तों, पार्टी के केंद्र सरकार में शामिल होने, सी पी आइ (एम) के नेतृत्व आदि के संबंध में जो विचार व्यक्त किए गए हैं, पार्टी उन्हें ठुकराती है। ये ऐसे विषय हैं जिन पर एक के  बाद एक पार्टी कांग्रेसों में पूरी चर्चा हुई है और निर्णय लिए गए हैं।    
                                
                                      साथी कृपया नोट करें  - प्लेनम की तारीखें बदलीं
 
पार्टी के सांगठनिक प्लेनम की तारीखों में कुछ बदलाव किया गया है और अब प्लेनम 27 से 31 दिसंबर 2015 तक चलेगा। प्लेनम के स्थान में कोई बदलाव नहीं है, कोलकाता में ही होगा। प्लेनम में पेश किए जाने वाले दस्तावेजों को अंतिम रूप देने के लिए होने वाली केंद्रीय कमेटी की बैठक की तिथियां भी अब बदल गयी हैं और यह बैठक अब 13 से 16 नवंबर तक होगी।