अब दाल और सब्जी भी विलासिता की वस्तु -किरण

जब दाल और सब्जी भी विलासिता की वस्तु बन बन गयी
-किरण
“ आप हमें आंकड़े दे रहे हैं ...आंकड़ों से हमारा पेट नहीं भरेगा. अपनी पत्नी से कीमतों की सच्चाई के बारे में  पूछिए,” इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक खबर के अनुसार पिछले हफ्ते यह बात बी.एन.राय जो कि भारतीय मजदूर संघ के नेता है ने मंत्री से कही. संघ परिवार के न्रेतत्व में से एक की यह पितृसत्तात्मक धारणा ही है कि केवल महिलायें ही या महिलाओं को ही कीमतों के बारे में जानती हैं कोई आश्चर्य की बात नहीं है. सबसे बड़े खुलासे की बात यह है कि यद्दपि वह व्यक्ति जो कि मोदी सरकार से राजनैतिक तौर पूरी तरह से जुडा हुआ है, निश्चित तौर पर एक वह व्यक्ति जिसने इस सरकार के सत्ता में आने के लिए खासी मेहनत की, वह व्यक्ति सरकार के मुद्रास्फीति के आंकड़ों को पचाने में असमर्थ है.  
आधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि न केवल थोक स्तर पर कोई मुद्रास्फीति है बल्कि इस वर्ष के अप्रैल माह में पिछले अप्रैल के माह के मुकाबले कीमते 2.7 प्रतिशत के नीचे हैं. यहाँ तक कि फूटकर स्तर पर आधिकारिक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के मुताबिक़ अप्रैल तक मुद्रास्फीति केवल 4.87 पर रही. इसका मतलब है कि एक साल में कीमतों में बढ़ोतरी औसतन 5 प्रतिशत से कम पर रही. ये कुछ आंकड़े हैं जिन्हें नरेन्द्र मोदी, अरुण जेटली और उनके भक्त लोग लगातार पेश करते हैं और यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि मोदी महंगाई कम करने के अपनी वादे को पूरा कर दिया. आम आदमी और औरत अपने जीवन के कठोर तजुर्बे से जानती हैं कि ये आंकड़े उन सचाई से मेल नहीं खाती हैं जिनका वे रोज़ बाजारों में सामना करते हैं. उन्हें आधिकारिक आंकड़ों को बताने की जरूरत नहीं पड़ती जब उन्हें मंहगाई की मार झेलनी पड़ती है, लेकिन ये आंकड़े खुद दिखाते हैं कि कैसे ये औसत का खेल कैसे गंभीर वास्तविकताओं को छिपाते हैं.
वस्तुओं के दो समूह मुख्य समस्या का केंद्र हैं – दाल और सब्जियां. यहाँ तक कि आधिकारिक थोक मूल्य सूचकांक मानता है कि दालों में मुद्रास्फीति 15 प्रतिशत है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक कहता है कि पिछले वर्ष के मुकाबले “दाल और उत्पाद” की कीमतों में 12.5 प्रतिशत का इजाफा है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के अनुमानों के अनुसार शहरी इलाकों में अप्रैल से अप्रैल तक कीमतों में 18.3.प्रतिशत की बढ़ोतरी हुयी है. अपने आप में ये चिंता से भरे आंकड़े हैं, लेकिन इनसे तो सही तश्वीर दिखने की शुरुवात भी नहीं होती है.
उपभोक्ता मामलों के विभाग के डाटा से स्थिति वास्तव में कितनी बदतर है का पता चलता है। पांच प्रमुख दालों की कीमतों का क्या हुआ है पर एक नजर डालते हैं। हमने केवल राष्ट्रीय राजधानी और राज्यों की कुछ राजधानियों को चुना है जहाँ भाजपा सत्ता में है दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर और भोपाल. अन्य जगहों पर तो भगवा ब्रिगेड दावा करती है कि यहाँ कमज़ोर राज्य सरकारें हैं जिनमें अन्य पार्टियों की सरकारे हैं इसलिए कीमतों के नियंत्रण से बाहर जाने के लिए वे जिम्मेदार हैं. आंकड़े बताते हैं कि उपरोक्त सभी शहरों में 22 मई से 22 माय तक तुर (अरहर) की दाल की कीमतों में 20 से 38 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. उर्द की दाल के मामले में बढ़ोतरी 22 से 44 प्रतिशत की है. मसूर की दल के लिए बढ़ोतरी 12 से 55 प्रतिशत है और मूंग डाल में 2 से 53 प्रतिशत की बढ़ोतरी है. चने की दाल में मूल्य वृद्धि, अधिक विविध है चूँकि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भोपाल में इसमें गिरावट देखने को मिली है और जयपुर में इसकी कीमतों में 50 प्रतिशत का उछाल देखने को मिला है. दिल्ली और मुंबई में तूर, उर्द और मूंग की दालें 100 रुपए किलो बिकी या कुछ अन्य केन्द्रों में उससे थोडा कम. सब्जियों की स्थिति कुछ जायदा अलग नहीं है. थोक मूल्य सूचकांक दिखाता है पिछले अप्रैल के मुकाबले में इस अप्रैल में प्याज के दामों में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी है. लेकिन कहानी का यह एक छोटा हिसा है. मोदी के अपने अहमदाबाद में राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के फूटकर मूल्य आंकड़ों के मुताबिक़ कीमतों में 57 प्रतिशत का उछाल है यानी पिछली मई में 15 रुपए औसत के मुकाबले इस मई में कीमत 23 रुपए औसत रही.
अगर प्याज के दाम अब्ध रहे हैं तो टमाटर के दाम आसमान छू रहे हैं. जिन पांच शहरों के बारे में हमने बात की है, उनमें अहमदाबाद में टमाटर की कीमतों में 55 प्रतिशत से लेकर भोपाल में 265 प्रतिशत की बढ़ोतरी रही है. मटर के मामले में केवल तीन शहरों से ही आंकड़े मिले, इनमें भी 30 से 39 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गयी. दिल्ली में फूलगोभी की कीमत दोगुनी हो गयी  है, और मुंबई और अहमदाबाद में इसमें 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी रही. राष्ट्रीय राजधानी में बेंगन की किमत में 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी रही.
यह सूचि यूँ ही जारी रह सकती है, लेकिन सवाल बहुत साधारण है - अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें काफी कम रहने से सरकारी सूचकांकों लाने नीचे में मदद मिली है, लेकिन लोग सूचकांक से पेट नहीं भर सकते हैं, उनके लिए तो दाल और सब्जी ही मायने रखती हैं जिनके दाम काफी उपर हें. खाद्य पदार्तों में बड़ी कीमतों की वजह से केवल घर का बजट ही नहीं गड़बड़ाया है. इसके पोषण पर गंभीर प्रभाव पड़ेंगे जबकि देश में कुपोषण का मामला लहले से ही गंभीर स्थिती में है. भारत में आबादी का एक बड़ा हिस्सा रिवाज से ही शाकाहारी है. और एक उससे भी बड़े हिस्से को मजबूरी में मुख्य रूप से शाकाहारी भोजन पर बशर करना पड़ता है क्योंकि मांस की कीमत ज्यादा है और उसे खरीदना हरेक के बस की बात नहीं है. इन तबकों के लिए दालें बहुत महत्त्वपूर्ण हैं जिनसे वे प्रोटीन ले सकते हैं और सब्जियां जिनसे उन्हें खनीज तथा विटामिन प्राप्त हो सकते हैं. जैसे-जैसे इनकी कीमते बढ़ती हैं और जो परिवार हाशिये पर हैं वे खाने का सेवन कम कर देते हैं, जिसका असर आर्थिक बौझ से भी ज्यादा पड़ता है. क्या हम कीमतों में कमी लाने के लिए कुछ सख्त कदम की उम्मीद कर सकते हैं? क्या सरकार सच्चाई मानने के लिए तैयार है, कुछ उम्मीद की जा सकती थी लेकिन जब मंत्री ही इठलाते हुए चारो तरफ घूम-घूम कर कह रहे हैं कि मुद्रास्फीति नकारात्मक है और अछे दिन आ गए हैं, तो लगता है कि कोई नहीं है जो इस समस्या को थी कर सके क्योंकि वे खुद ही जाता रहे हैं कि कोई समस्या नहीं है.
वस्तू
एक साल में बड़ी कीमतें
दालें
तुर (अरहर))
20 से 38 प्रतिशत
उर्द
22 से 44 प्रतिशत
मसूर
12 से 55 प्रतिशत
मूंग
2 से 53 प्रतिशत
  
सब्जियां
टमाटर
55 से 265 प्रतिशत
मटर
30 से 39 प्रतिशत
प्याज
10 से  57 प्रतिशतt
फूलगोभी
7 से 106 प्रतिशत
यह आंकड़े दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर और भोपाल के लिए है