एक पीढ़ी को ज़हर देने के लिए नेस्ले की जिम्मेदारी

नेस्ले पूरी एक पीढ़ी को ज़हर देने की अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती.

अमित सेनगुप्ता, जून 06, 2015
 
हाल ही में मेगी नूडल्स के इर्द गिर्द सुरक्षा की चिंता का विवाद जोकि 2 मिनट में तुरंत खाए जाने वाली स्विस बहुराष्ट्रीय कंपनी नेस्ले का ब्रांड है – ने कईं गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं जो सवाल मीडिया रिपोर्ट्स में उपलब्ध नहीं हैं. यह पूरा का पूरा विवाद उस वक्त खड़ा हुआ जब उत्तर प्रदेश फ़ूड एंड ड्रग विभाग के एक ईमानदार इंस्पेक्टर ने मेगी इंस्टेंट नूडल की जांच कराई और उसमें उसने विषाक्त और नाजायज सामग्री की उपस्थिति पाई. जांच में पाया गया कि नूडल्स में लेड की मात्रा अनुमति के स्तर से 7 गुना ज्यादा है और खाद्य योज्य मोनोसोडियम ग्लूटामेट भी पाया गया जिसे अजीनोमोटो भी कहा जाता है यद्दपि इसके पैकेट पर लिखा है कि इसमें मोनोसोडियम ग्लूटामेट नहीं मिलाया गया है.
 
इसके बाद कईं राज्यों ने इसकी जांच कराई और उनमें भी लेड का स्तर उंचा पाया गया. क्यों राज्य सरकारों ने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया और नेस्ले बाज़ार से इसे 'अस्थायी रूप से वापस ले लिया'. अंतत सरकार ने पूरे भारत में इस उत्पाद को ‘वापस’ बुलाने का आदेश दे दिया. जबकि नेस्ले इसकी जिम्मेदारी लेने से मना करता रहा और अलग-अलग भाषा बोलने लगा. उसने दावा किया कि कमपनी की अपनी की गयी जांच में पाया की उनका उत्पाद बिलकुल सुरक्षित है उसने साथ ही यह भी कहा कि हो सकता है लेड उसमें शामिल अन्य खाद्य पदार्थों से आया हो.
 
यह पचाना मुश्किल है कि विभिन्न राज्यों से सभी जांचों में गलत नतीजे पाए जाए. इससे यह स्पष्ट है कि बाज़ार में उपलब्ध मेगी नूडल्स में लेड की मात्र अनुमति की दर से काफी ज्यादा है. मेगी नूडल्स भारत में लाया जाने वाला पहला ब्रांड था जिसे की 1980 के दशक के मध्य में लांच किया गया था और तभी से यह भारत में नेस्ले का बिकने वाला सबसे बड़ा उत्पाद बन गया. ‘इंस्टेंट नूडल्स’ की बाजार में कई गुना की वृद्धि हुई है - यह अब 10,000 करोड़ रुपए का बाज़ार बन गया है और नेस्ले का हिसा इसमें 70 प्रतिशत है. इंस्टेंट नूडल्स लाखों भारतीय परिवारों के लिए मुख्य नाश्ता (भोजन) बन गए हैं (और कुछ मामलों में पूर्ण भोजन) – खासकर मध्य वर्ग और गरीबों के कुछ हिस्से के लिए. देश भर में सड़क के किनारे ठेलों के जरिए मैगी को बेचा जाता है और बच्चों की एक पूरी पीढ़ी मैगी नूडल्स को नियमित आहार के रूप में खाकर बड़ी हुयी है। नेस्ले ने वर्षों से अपने हमलावर विज्ञापन के रूप में अपने विज्ञापनों पर ख़ास ध्यान दिया और मेगी को एक आसान नास्ते के रूप में पेश किया (“दो मिनट में नूडल तैयार” और दावा किया की यह एक स्वास्थ्य उत्पाद है.
मैगी ने एक पूरी पीढ़ी को धीमी गति का ज़हर दिया हो सकता है
 
लोग अब सवाल पूँछ रहे हैं कि मेगी कितनी नुक्शानदायक है और मेगी में लेड की मात्र अधिक होने स्वास्थ्य को कितनी हानि हुयी होगी वह भी खासकर बच्चों को. इस सवाल का कोई आसान जवाब नहीं है. लेड एक जाना माना विषाक्त पदार्थ है और इसके इस्तेमाल से कई हानियाँ हो सकती हैं. लेड शरीर के कईं व्यवस्थाओं को हानि पहुंचाता है और दिल, हड्डियों, अंतड़ियों, गुर्दों और प्रजनन तथा नर्वस सिस्टम के लिए इसे विषाक्त माना जाता है. यह बच्चों के नर्वस सिस्टम के विकास में रुकावट पैदा करता है और सीखने और व्यवहार में विकारों को पैदा कर सकता है. यहाँ यह भी समझना जरूरी है एक पैकेट मेगी खाने से और उस में मौजूद लेड की वजह से (जैसा की कुछ नमूनों में पाया गया है) उसका असर जायदा वक्त तक नहीं रहता है. जब थोड़ी मात्रा में लेड खाया जाता है तो वह शरीर में जमा हो जाता है (खासकर दिल, गुर्दा और जिगर में) इसका असर तब होता है जब लम्बे वक्त तक इसका सेवन किया जाए. तो लेड का असर कुछ वक्त बाद ही पता चलता है जब इसका सेवान लगातार या बार-बार किया जाता है. हमारे पास ऐसे कोई भी आंकड़े मौजूद नहीं है जो हमने ये बता सके कि इन सालों में मेगी के किस बैच के उत्पाद में उच्च मात्रा में लेड था. इसलिए इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है कि उन लोगो में लेड क्या असर है जिन लोगो ने मेगी का सेवन नियमित रूप से किया है.लेकिन लेड के संभावित गहरे असर को देखते हुए यह संभव है कि बहुत से उपभोक्ताओं खासकर बच्चे इससे काफी प्रभावित हुए हों. लेड (सीसा) विषाक्तता के लक्षण गैर विशिष्ट होते हैं और अन्य हालात के जरिए भी पाए जा सकते हैं – जैसे सर दर्द, पेट में दर्द, चिड़चिड़ापन, सीखने में परेशानी का होना, आदि – इन कुछ लक्षणों की वजह से यह पता लगाना बहुत मुश्किल है कि लेड से कितना नुकशान हुआ है. मेगी बवाल से दो सवाल रौशनी में आते हैं. पहला, देश में भोजन सुरक्षा के मामले में नियामक प्रणाली. बार-बार ऐसी रपट आती हैं कि भोजन विषाक्त हो गया है – लेकिन ये राप्त तभी आती हैं जब कोई एजंसी अचानक अपने आप किसी उत्पाद के नमूनों की जांच कराती है. बाज़ार में मौजूद खाद्य उत्पादों के परीक्षण के लिए कोई नियमित व्यवस्था नहीं है. इसलिए, मेगी के मामले में हम यह नहीं जानते हैं कि उत्पाद में लेड की ऊँची दर वर्षों से इसमें मौजूद है या फिर दशकों से. हम यह भी नहीं जानते हैं अन्य प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों जिन्हें हम नियमित रूप से खरीदते हैं क्या उनमें भी लेड है, या फिर अन्य विषाक्त पदार्थ उनमे भी मौजूद है या नहीं. सभी संभावनाओं में 
 
इसकी पूरी संभावना है कि बाज़ार में बिक रहे बहुत से उत्पाद में एक या उससे ज्यादा विषाक्त पदार्थ मौजूद हैं. यदि कुछ भी नहीं, मैगी विवाद खाद्य सुरक्षा नियमों और विनियमों में सुधार लाने का काम कर सकती है. इसमें खाद्य सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एजंसी की मशीनरी को चुस्त दुरुस्त बनाना चाहिए – अतिरिक्त अफसरों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए, इसके साथ ही जांच की सुविधा और नमूनों की नियमित जांच के लिए नियम बनाने चाहिए. लेबल की व्यवस्था को बदलना चाहिए ताकि सभी खाद्य उत्पादों में मौजूद विषाक्त पदार्थों की मात्र का जिक्र किया जा सके.
 
दूसरा मुद्दा जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया वह है मेगी लेड कहाँ से आया. क्योंकि लेड ऐसा विषाक्त पदार्थ है, इसके इस्तेमाल पर पूरी दुनिया में पाबंदी है. बीते समय में बड़ी संख्या में पानी की सप्लाई के लिए लेड से बने पाइप्स का इस्तेमाल किया जाता था. अब भारत और ज्यादातर देशों में इसके इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध है. पेंट और वार्निश में भी लेड होता है कई देशों में इसके इस्तेमाल पर भी पाबन्दी है. यद्दपि भारत में पेंट्स में लेड के इस्तेमाल की मनाही नहीं है इसलिए पानी में लेड के संक्रमित होने की संभावना बनी रहती है. पी.वी.सी. के पाइप बनाने में भी लेड का इस्तेमाल होता है. पी.वी.सी. पाइप के जरिए सप्लाई किये जाने वाले पानी से संक्रमण की संभावना रहती है. नेस्ले अपनी इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है कि मेगी में लेड स्रोतों से आया है, जिन पर उनका नियंत्रण नहीं है. नेस्ले यह जानता है कि उनके उत्पाद में लेड की मात्रा ज्यादा नहीं होनी चाहिए इसलिए यह उनकी जिम्मेदारी है कि अपने उत्पाद को बनाते वक्त इस बात का ध्यान रखें उसमें वैधानिक चेतावनी को ध्यान में रखे, स्पष्ट है, नेस्ले ने कभी अपने उत्पाद की जांच नहीं कराई, और यह भी संभव है वे नहीं जानते थे कि वे एक जवान पीढ़ी की लेड/ज़हर की छोटी-छोटी खुराक दे रहे हैं. या फिर वे सब जानते थे और उन्होंने इस पर कुछ नहो किया. दोनों ही परिद्रश्य में नेस्ले पर अपराधिक मुकदमा चलना चाहिए.
 
बिना लेड के भी मेगी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है
 
अब ज्यादा बुनियादी मुद्दे की तरफ बढ़ते हैं. नेस्ले अपने उत्पाद को ‘स्वास्थ्य’ उत्पाद के रूप में पेश करता है. उनका नारा है “जायका भी, स्वास्थ्य भी” – एक ऐसा नारा जिसे बड़ी राशी देकर अमिताभ बच्चन और माधुरी दीक्षित जैसे अभिनेताओं के जरिए हमारे शयन कक्षों तक पहुंचाया जा रहा है. अगर इसमें विषाक्त पदार्थ न भी हो, तो सवाल उठता है कि मेगी कितनी स्वाथ्य वर्धक है? इसका छोटा सा जवाब है, सभी अल्ट्रा प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ की तरह मैगी भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. 100 ग्राम मेगी में 400 केलोरी होती हैं और 14 ग्राम चर्बी. इसमें नमक की मात्रा ऊँची होती है और प्राकृतिक फाइबर/रेशा की मात्र काफी कम होती है – अन्य शब्दों में अगर इसका नियमित इस्तेमाल किया जाए तो यह स्वास्थ्य को बड़ी हानि पहुंचा सकता है. उच्च मात्रा में नमक, चर्बी और केलोरी का सेवन दिल की बिमारी और मधुमेह को बढ़ावा दे सकता है. किसी भी भोजन में जिसमें प्राकृतिक रेशे की कमी है उससे पाचन के रास्ते में केंसर होने ख़तरा बना रहता है और रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा के बढ़ने की गुंजाईश बन जाती है. मेगी के विज्ञापन में मुस्कुराते बॉलीवुड के अभिनेताओं को छोड़ भी दें, जिस उत्पाद को वे बेच रहे हैं वह स्वास्थ्य के लिए लम्बे समय और मध्य समय के लिए काफी हानिकारक है.
 
मजेदार बात है कि 2008 में नेस्ले उस वक्त रेंज हाथ पकड़ा गया जब उसने एक विज्ञापन जो कि बांग्लादेश के लिए बना था और उसे उन्होंने ब्रिटिश टी.वी. पर प्रशारित कर दिया जिसमें यह दावा किया गाया था कि नेस्ले नूडल्स के सेवन से “माश्पेशियाँ, हड्डियाँ और बाल मज़बूत होते हैं”. ब्रिटिश विज्ञापन मानक प्राधिकरण ने नेस्ले के इस वाणिज्यिक पर यह कहकर प्रतिबंध लगा दिया कि यह यूरोपियन यूनियन उपभोक्ता सुरक्षा कानून का उलंघन करता है, जिसके पास विज्ञापनकर्ताओं को इसका सबूत देना पड़ता है कि उत्पाद कैसे स्वास्थ्यवर्धक है. वर्ष 2010 में भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) के कहने पर नेस्ले को भारत में एक टी.वी. विज्ञापन को हटाना पड़ा जिसे कि अप्रैल और जून माह के बीच प्रसारित किया गया था. भारतीय विज्ञापन मानक परिषद ने घोषित किया कि मेगी केच’उप जो दवा करती है कि वह स्वाथ्य है गुमराह करने वाली बात है – नेस्ले के इस विज्ञापन में दिखाया गया कि एक वृद्ध व्यक्ति और एक मोटा व्यक्ति अस्वस्थ्य बर्गर खा रहे हैं और उसमें दावा कर रहे हैं कि इसे खाओ और  “भारत को स्वस्थ्य बनाओं”.
 
केवल मेगी में ही नहीं बल्कि सभी अल्ट्रा प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में भिन्न डिग्री में, इसी तरह के लक्षण मिलते हैं – उच्च नमक, उच्च शक्कर, उच्च चर्बी की मात्रा और प्राकृतिक रेशे में कमी रहती है. ऐसा क्यों है इसके कुछ उचित उदहारण हैं, हालांकि पूरी कायनात मानती है कि ये भोजन हानिकारक है. यह वह चीज़ है जहाँ सार्वजनिक स्वास्थ्य वाणिज्यिक हितों के आड़े आता है. उपर्युक्त सभी विशेषतायें दो कारणों के लिए जरूरी हैं जो अल्ट्रा-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ की व्यावसायिक सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं - वे उत्पाद की जीवन को बढ़ा देते हैं और वे यह निश्चित कर देते हैं कि उपभोक्ता उनके पदार्थ के इस्तेमाल करने का वशीभूत हो जाए.
 
२०१३ में खोजी पत्रकारिता के लिए पुलित्ज़र पुरस्कार जीतने वाले न्यू यॉर्क टाइम्स अख़बार के पत्रकार माइकल मोस की बहुचर्चित किताब ‘साल्ट सुगर फैट’ (नमक चीनी वसा) छपी. उसमे बताया गया है की कैसे कोका कोला, क्राफ्ट, फ्रिटो-लैय तथा नेस्ले के प्रबंधकों व खाद्य वैज्ञानिकों ने इस तथ्य का फायदा उठाया कि मीठे, नमकीन तथा चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थ, मस्तिष्क के उन्ही भागों को उत्तेजित करते हैं जिन्हें कोकेन नमक मादक पदार्थ भी प्रभावित करता है. किताब बताती है कि बच्चे कुदरती तौर पर नमक पसंद नहीं करते हैं, लेकिन जब बच्चों को उच्च मात्रा में नमक वाले उत्पाद जैसे आलू चिप्स, बेकन, सूप, हैम, हॉट डॉग्स, फेंच फ्राइज और पिज़्ज़ा खिलाते हैं तो उन्हें इनकी आदत पद जाती है और जीवनभर वे उनके आदि हो जाते हैं. मोस की जांच ये खुलासा करती है कि खाद्य और पेय से जुडी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का शक्कर पर शौध के पीछे उद्देश्य होता है कि वे उसे "आनंद बिंदु" के रूप में पेश करें और ऐसा बताएं कि स्वीटनर की अधिकतम मात्रा का सितेमाल खुशी का कारण बनता है. "आनंद बिंदु" को हज़ारों  “स्वादों के टेस्ट” और कई कंपनियों द्वारा चलाई जा रही प्रयोगशालाओं में सावधानीपूर्वक डेटा संग्रह करके किया जाता है और इस काम के लिए हज़ारों वैज्ञानिक काम करते हैं. जिन बच्चों को शक्कर की आदत पड़ जाती है वे हमेश उसकी मांग करते हैं, जिससे की प्रोसेस्ड भोजन के गारंटीशुदा उपभोक्ता मिल जाते हैं. इसी तरह, मोस बताते हैं प्रोसेस्ड भोजन में उच्च वसा सामग्री खाद्य बहुराष्ट्रीय निगमों की एक सोची समझी चाल है क्योंकि लोगों को वसा का सुस्वाद "मुँह को लग जता है"। एक रिपोर्ट में ब्रिटेन उपभोक्ताओं एसोसिएशन का दावा है कि 15 में से 7 अनाज वाले नाश्ते जिनमें उच्च मात्रा में शक्कर, वसा और नमक है वे नेस्ले के उत्पाद हैं.
इसकी व्यापक चिंताएं हैं कि गैर संचारी रोगों की महामारी जैसे दिल की बिमारी, सेरिब्रल स्ट्रोक और मधुमेह पूरी दुनिया में फ़ैल रही हैं. खाद्य और पेय से जुडी बहुराष्ट्रीय निगम इस महामारी को फलाने प्रमुख हैं. ब्राजील के पोषण विशेषग्य, कार्लोस मोंटीरो, कहते हैं कि खाद्य और पेय से जुडी बहुराष्ट्रीय निगमों की नीतियाँ और प्रथाएं, जिनके उत्पाद अल्ट्रा प्रोसेस्ड हैं और जिनके ज्यादातर मुखायालय या तो अमरिका या फिर यूरोप में हैं, पूरी दुनिया में परम्परागत भोजन की जगह प्रोसेस्ड भोजन का कब्ज़ा करवा रहे हैं. उच्च आय वाले देशों में इन कम्पनियों का अधिकतर लक्ष्य कम आय वाले समूह हैं, जिसकी वजह से गरीब आय वाले लोगो में मोटापा बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा हैं. इस सम्बन्ध में पूरा दस्तावेज़ बनाया गया है, उदहारण के तौर पर खासतौर पर अमरिका के उन शहरों में जहाँ अफ्रीकन-अमरिकन आबादी रहती है. चूँकि उच्च आय वाले देशों में खाद्य और पेय का बाज़ार सिकुड़/ठहराव रहा है, ये कम्पनियाँ अब अपने उत्पादों के लिए मध्य आय तथा कम आय वाले देशों पर नज़र गदा रही है, जैसे कि भारत. उदहारण के लिए नेस्ले जो कि अपने पदार्थों को "लोकप्रिय स्तर वाले उत्पादों" बताता है कि वार्षिक बढ़ोतरी 25 प्रतिशत है और इनके उत्पादों का बाज़ार एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरिका में 90 अरब डोलर तक पहुँचाने का अनुमान है.
 
 
नेस्ले – स्वास्थ्य भोजन के बहाने के पीछे
 
अब नेस्ले की बात करते हैं, जो पवित्रता का दावा भरते हैं कि वे “ लोगों के जीवन के प्रति प्रतिबद्ध हैं इसलिए वे जीवन के हर स्तर के और हर समय के लिए स्वास्थ्य भोजन ओए पेय पेश करते हैं”. फिर भी निगरानी समूहों ने नेस्ले को दशकों से कई वैश्विक सूचियों में एक महात्वपूर्ण निगम के तौर पर अपराधिक मामलों के लिए निरंतर रुप से शामिल किया है.
 
यह एक कंपनी है जो 25 अधिक वर्षों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय बहिष्कार का विषय रहा है कि – शायद एक वैश्विक निगम का सबसे लंबे समय तक बहिष्कार झेलने वाली कम्पनी. कार्यकर्ता संगठनों ने नेस्ले को ‘बच्चों को मारने वाली” कम्पनी माना है क्योंकि वह लगातार मां के दूध के विकल्प का अनैतिक व्यापार करता रहा, मां के दूध के विकल्प के अनैतिक व्यापार पर 1981 में विश्व स्वाथ्य संगठन ने मां का दूध के विकल्प के विपणन के लिए इंटरनेशनल कोड बनाया. 69 देशों में मोनिटरिंग करने के बाद 2004 में करीब 2000 कॉड के उलंघन की घटनाएं मिली, और अन्य कंपनियों के मुकाबले ज्यादातर में नेस्ले लिप्त पाया गया.
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“बच्चों को मारने वाली” कमपनी ख्याति के अलावा, नेस्ले की कॉर्पोरेट अपराधों की सूचि काफी प्रभावशाली है. 2010 में एक डाक्यूमेंट्री फिल्म “द डार्क साइड ऑफ़ चोकोलेट” यह खुलासा करती है कि आइवरी कास्ट में नेस्ले कोकोवा प्लान्टेशन में बाल बंधुआ मजदूरों के इस्तेमाल में भी लिप्त है. 2002 में भयावह इथियोपियाई अकाल के बीच में, नेस्ले ने, इथियोपिया के पशुधन विकास कंपनी के राष्ट्रीयकरण के लिए मुआवजे के रूप में इथियोपिया की सरकार पर 6 करोड़ डॉलर के मुवावजे केस दाग दिया, जिस्मने नेस्ले की हिस्सेदारी थी. ब्राजील के सेरा डा मन्तिक़ुइएर क्षेत्र में, जो "सर्किट पानी” का क्षेत्र है जिसके जमीन के पानी में खनीज व औषधीय गुण के तत्व पाए जाते हैं, अपने बोतल के पानी के प्लांट के लये उसके अटी अधिक दोहन से ज़मीन का पानी का स्तर काफी नीचे चला गया और प्रयावरण के लिए बड़ा नुक्सान साबित हुआ. चार बड़ी कंपनियों में से एक कॉफी समबन्धित उद्योग ( जिसमें सारा ली, क्राफ्ट और प्रोक्टर और गैम्बल शामिल है) में से नेस्ले कुछ अनुमानों में कॉफ़ी किसानों की बुरी स्थिति के लिए जिम्मेदार है जिन्हें उनके उत्पाद के लिए काफी कम पैसा दिया जाता है, इसके साथ ही वे दुनिया में गिरती दामों की वजह से तबाही के कगार पर पहुँच गए हैं. इंग्लैंड की संस्था ऑक्सफेम के मुताबिक़ कोफ्फे किसानों को एक पौंड के लिए 24 सेंट्स मिलते हैं और उसी एक पौंड के लिए अमीर देशों के किसानों को 3.60 डॉलर मिलते हैं - 1500% का मार्क-अप। नेस्ले कोलंबिया और थाईलैंड में युनियां तोड़ने की गतिविधियों में भी शामिल है जिसमें यूनियन के नेताओं को “मौत की धमकी” भी शामिल है.
नेस्ले उपर दर्शाए गए सभी अपराधों से निजात पा लेता है क्योंकि वह कोई साधारण कम्पनी नहीं है. इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के वेवे में है, नेस्ले दुनिया की सबसे बड़ी खाद्य और पेय सम्बंधित कम्पनी है. इसकी 447 फैक्ट्री हैं, यह 194 देशों में फैली है, और इसके 333,000 कर्मचारी हैं. 2011 में नेस्ले ग्लोबल फोर्चून 500 में नंबर 1 कमपनी दर्ज की गयी थी जिसका मुनाफा सबसे ज्यादा था.  233,000,000,000 अमरिकी डॉलर के बाजार पूंजीकरण के साथ दुनिया में 100 देशों से भी बड़ी नेस्ले सबसे बड़ी वित्तीय संस्था है. ऐसा अंदाजा लगाया जाता है कि नेस्ले के लाबीस्ट हर देश में हैं जो देश की नीतियों को प्रभावित करते हैं. मेगी के घोटाले के बाद कम्पनी ने अमरिका की लोबिंग करने वाली एक विशाल कम्पनी ए.पी.सी.ओ. को नियुक्त किया है ताकि वह इसकी बिगडती छवि को सुधार सके. नेस्ले के सम्बन्ध में गर तर्कशीलता को ध्यान में रखा जाता है तो भारत सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह नेस्ले के वित्तीय और राजनितिक दबाव में नहीं आएगी.
 
अनुवाद:महेश कुमार