व्यापमं : व्यापकतम घोटाला और 44 राजदारों की संदिग्ध मौतें - बादल सरोज

व्यापमं : व्यापकतम घोटाला और 44 राजदारों की संदिग्ध मौतें - बादल सरोज
 
—नम्रता डामोर (25 वर्ष) मेडिीकल कॉलेज की छात्रा : उज्जैन के पास रेल पटरियेां के पास क्षत-विक्षत लाश मिली। सरकार का दावा आत्महत्या का, परिवार का आरोप है कि व्यापमं (व्यावसायिक परीक्षा मंडल) घोटाले के सरगनाओं में से एक जगदीश सागर ने हत्या कराई है। आत्महत्या के लिए कोई 10 दिन पहले से रिजर्वेशन कराकर इतनी दूर नहीं जाता।
—नरेंद्र सिंह (29 वर्ष) वेटरनरी डॉक्टर : इंदौर, जेल में मौत। सरकार का दावा हार्ट अटैक से मौत का है, जबकि जेल अस्पताल के रिकॉर्ड के मुताबिक उसे पेट में दर्द की शिकायत की वजह से दाखिल किया गया था।
ये दो मौतें उन युवाओं की हैं जिन्हें, अब भारत के व्यापकतम घोटाले में बदल गये, मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले के तहत अपराधियों या लाभार्थियों के रूप में पुलिस ने या तो जांच के दायरे में लिया था या बंदी बनाया था। अब तक व्यापमं के गवाहों/अभियुक्तों/राजदारों में से 44 की इस तरह की संदिग्ध मौतें हो चुकी हैं। सरकार और भाजपा सिर्फ 25 मौतों का दावा कर रही है, हालांकि 25 की संख्या भी ‘सिर्फ’ नहीं होती है। इन संदिग्ध मौतों में मध्य प्रदेश के राज्यपाल के बेटे शैलेश यादव (बंगले में कथित रूप से डायबिटीज से हार्ट अटैक से मरे), विजय सिंह (कांकेर में भाजपा नेता के होटल में मरे), जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन डीके साकल्ले (जलकर मर गये), रमेंद्र सिंह भदौरिया (ग्वालियर में) अपने घर में लटके पाये गये, आदि-इत्यादि शामिल हैं। व्यापमं घोटाले से जुड़े व्यक्तियों की मौतें रुक नहीं रही हैं और मध्य प्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर—जो आया है वह जायेगा— राजा हो या रंक : मौत तो एक दिन आयेगी, रेल में आये या जेल में के आध्यात्मिक प्रवचनों का जाप कर रहे हैं।
            इन आसामान्य मौतों की असाधरण बड़ी संख्या से ही स्पष्ट है कि कुछ ऐसा खतरनाक सच है, जिस पर परदा डालने के लिए, कुछ बहुत बड़ों को बचाने के लिए छोटों की बलि दी जा रही है।
 
अब तक का सबसे सुनियोजित और व्यापकतम घोटाला
 
            2009 में मेडिकल कॉलेज की भर्तियोंं के लिए हुई पीएमटी परीक्षाओं से उजागर हुआ भरती घोटाला, भरती करने वाले विभाग मध्य प्रदेश प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड के हिंदी नाम व्यावसायिक परीक्षा मंडल के संक्षिप्तीकरण व्यापमं के नाम से कुख्यात है। शुरूआत में व्यापमं सिर्फ मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज की परीक्षाएं लेने के लिए बनाया गया था। इसके गठन के पहले डॉक्टर व इंजीनियर बनने के लिए सिर्फ 12वीं की कक्षा में पाये गये अंकों की मेरिट लिस्ट काफी होती थी। नतीजे में मध्य प्रदेश के दो-तीन जिलों के दो-तीन स्कूलों से नकल मारकर निकले ऐसे लोगों से मध्य प्रदेश के मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज भर जाया करते थे, जो फिजिक्स की स्पेलिंग एफ से और केमिस्ट्री की स्पेलिंग के से लिखा करते थे।
            स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआइ) की अगुआई में उस वक्त चले जबरदस्त आंदोलन के बाद सरकार पीएमटी और पीईटी जैसी भर्तीपूर्व परीक्षाओं के लिए तैयार हुई थी। विडंबना यह है कि बेईमानी और फर्जीवाड़ा रोकने के लिए किया गया प्रबंध भाजपा के हाथ में आते ही खुद धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का पर्याय बनकर रह गया है।
            2007 में भाजपा की सरकार बनने के बाद इस व्यापमं को प्री पीजी, फूड इंस्पेक्टर, वन रक्षक, वन निरीक्षक, सूबेदार, सबइंस्पेक्टर, प्लाटून कमांडर, पुलिस कांस्टेबल, मिल्क फेडरेशन आदि-इत्यादि उन सभी भर्तियों की जिम्मेदारी दे दी गयी, जो राज्य की पीएससी के दायरे में नहीं आती थीं (हालांकि हाल ही में पीएससी की भर्ती में भी एक बड़ा घोटाला सामने आ गया है)। यही घोटालेबाज पिछले दिनों स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, प्रोबेशनरी अफसरों की भती परीक्षा में भी लिप्त पाये गये हैं।
            2013 में हाई कोर्ट में लगाई एक जनहित याचिका से उजागर हुए इस घोटाले में अभी तक मेडिकल कॉलेजों में हुई 1087 फर्जी भर्तियां पकड़ी जा चुकी हैं। कुल 2500 लोगों पर मुकदमे कायम किये जा चुके हैं, जिनमें से करीब दो हजार गिरफ्तार किये जा चुके हैं। इनमें मध्य प्रदेश के तत्कालीन शिक्षा और संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, राज्यपाल के ओएसडी और मुख्यमंत्री सचिवालय में मुख्यमंत्री के निजी सचिव, व्यापमं के परीक्षा नियंत्रक, सिस्टम एनालिस्ट, परीक्षा प्रभारी सहित अनेक बिचौलिये शामिल हैं। इनमें सबसे बड़ा नाम कुख्यात खनन माफिया सुधीर शर्मा का है, जो साइकिल पर दूध बेचने वाले से नौ साल में ही हजारों करोड़ रुपयों का मालिक बन गया, जिसके कारोबारी रिश्ते मुख्यमंत्री सहित अनेकों भाजपाईयों से हैं।
 
मुन्नाभाई से लेकर होम डिलीवरी तक : हर तिकड़म आजमाई
 
            इस भर्ती घोटालें में आजमाई गई पद्घतियों में प्रवेश पत्र (एडमिट कार्ड) पर फोटो बदलकर असली परीक्षार्थी की जगह किसी मुन्नाभाई को बैठाने से लेकर, पर्चा लीक करना, नकल कराना यहां तक कि परीक्षा हॉल में कोरी उत्तर पुस्तिका शीट छुड़वाकर बाद में घर में बैठाकर लिखवाने तक के नुस्खे आजमाये जाते थे। हाल ही में राज्य के ऑडिट विभाग ने यह चौंकाने वाला तथ्य उजागर किया है कि व्यापमं ने 9 लाख परीक्षार्थियों के लिए 29 लाख ओएमआर शीट और प्रवेश पत्र छापे थे।
            मसला यह नहीं है कि तादाद से ज्यादा इस छपाई से व्यापमं को 9 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ। मसला यह है कि इनमें 20 लाख उत्तर पुस्तिकाएं (ओएमआर शीट्स) का कोई रिकॉर्ड नहीं मिल रहा है। जाहिर है, इनका उपयोग इस घोटाले में काफी फुरसत के साथ किया गया था।
 
संघ भाजपा की लिप्तता है : लीपापोती की बदहवासी की वजह
 
            भले मजबूरी में एक मंत्री, अनेक अफसर और कई भाजपा नेताओं की गिरफ्तारी हो चुकी है। राज्यपाल और उनके बेटे के खिलाफ भी एफआइआर दर्ज हो चुकी है। हाई कोर्ट के कहने पर एक रिटायर्ड हाई कोर्ट जज की अध्यक्षता में तीन-सदस्यीय एसआइटी बन चुकी है। विशेष जांच दल ने 92,176 दस्तावेजों के साथ 3292 अपराधों में चार्जशीट दाखिल कर दी है। मगर एसटीएफ हो या एसआइटी, उनकी चिंता छोटी मछलियों को जाल में फांसने से अधिक घोटाले के बड़े मगरमच्छों को बचाना है।
            खुद एसआइटी ने माना है कि व्यापमं के कंप्यूटरों की हार्डडिस्क से छेड़छाड़ हुई है। उसके विवरण बदले गये हैं। व्यापमं के कंप्यूटरों पर काम करने वाले प्रशांत दुबे ने असली और मूल दस्तावेज एक्सल शीट के साथ मार्च, 2013 में दिल्ली हाई कोर्ट को सौंपे हैं। उनका दावा है कि हाई कोर्ट आने से महीनों पहले वह यह विवरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश के एक मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को देकर जांच की मांग कर चुके थे। जब उन्होंने कुछ नहीं किया, तो अब मजबूरी में उन्हें हाई कोर्ट आना पड़ा है। इस व्हिसल ब्लोअर ने अपनी जान भी खतरे में होने की आशंका जताई है।
            रिकॉर्ड में इस फेरबदल की वजह इस भर्ती घोटाले में मुख्यमंत्री, उनकी पत्नी तथा आरएसएस के पूर्व सरसंघचालक सहित बीसियों संघियों की नामजदगी का रिकॉर्ड छिपाने की कोशिश है। इन सभी ने, ज्यादातर ने पैसा लेकर, अपने-अपने लोगों की भरती कराने की सिफारिशें की थीं, जिनका बाकायदा कंप्यूटरीकृत रिकॉर्ड है। दिल्ली हाई कोर्ट में प्रस्तुत हार्डडिस्क की एक्सल शीट के असली विवरण के मुताबिक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का नाम 48 बार आया है। बाद में इसे काटकर उमा भारती कर दिया गया। मगर वे ऐसी बिफरीं कि प्रदेश के डीजीपी खुद उनके बंगले पर जाकर उन्हें क्लीन चिट थमा आये और कह आये कि उनकी जांच नहीं की जायेगी।
            जांच के दौरान कोई 350 से ज्यादा टेलीफोन कॉल्स मुख्यमंत्री निवास से किये गये पाये गये हैं। दो सैंकड़ा मामलों में मंत्री 1,2,3,4 के नाम से सिफारिशें दर्ज की गई हैं। एक मंत्री के पीए ने तो खुद 85 लाख रुपयों की घूस लेना कबूल किया है। पूर्व सरसंघचालक सुदर्शन (अब दिवंगत) ने अपनी निजी देखरेख करने वाले सहायक की सिफारिश फूड इंस्पेक्टर बनवाने के लिए की थी, यह भी जांच में आया। अनेक और बड़े स्वयंसेवकों के नाम भी आये, मगर जो इस जांच में कहीं नहीं थे, वे पुलिस महानिदेशक लगातार पत्रकार वर्ताएं करके इन सभी को क्लीन चिट थमाते रहे।
            मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता ने बताया कि खुद शिवराज ने उनसे कातर शब्दों में अनुरोध किया था कि वे उनकी पत्नी का नाम न लें। पूरे प्रदेश में चर्चा है कि व्यापमं भर्तियों के मामले में सिर्फ मुख्यमंत्री सचिवालय नहीं, उनका निवास और परिजन तक सभी लिप्त हैं। पकड़ में वे गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय ही आये हैं, जिन्हें दाखिला दिलाने की पेशकशें की गईं और जिनमें से ज्यादातर ने अपनी जमीन बेचकर या साहूकार से कर्ज उठाकर 15 से 30 लाख रुपयों तक की रकम जुटाई। घोटाला उजागर होने के बाद मध्य प्रदेश के पुलिस थानों की तो जैसे लॉटरी खुल गई है। संदिग्धों के नाम पर पूरे खानदान को थाने में बैठाकर की गई वसूली सैकड़ों करोड़ रुपयों में बैठती है।
            घोटालेबाजों का हौसला देखकर ही समझा जा सकता है कि उनके ऊपर उच्चतम वरदहस्त था। घोटाला उजागर होने के बाद मुख्य घोटालेबाज व्यापमं प्रमुख ने आईजी पुलिस को चि_ी लिखकर न सिर्फ संदिग्धों की सूची मंगाई बल्कि स्वास्थ्य व शिक्षा के प्रमुख सचिव ने आदेश तक जारी किया कि किसी भी संदिग्ध का दाखिला न रोका जाये। बस उनसे लिखवाकर ले लिया जाये कि यदि उनका प्रवेश गलत निक ला, तो वे एडमिशन रद्द करा लेंगे।
            करीब 10 हजार करोड़ रुपयों के इस घोटाले की जांच में लीपापोती का आलम यह है कि जिस हार्डडिस्क में छेडख़ानी की बात खुद एसआइटी तक ने स्वीकार की है, उसकी जांच कराके शिवराज सरकार ने क्लीन चिट हासिल कर ली है। यह अलग बात है कि उन्होंने इसे जांच के लिए केंद्रीय फोरेंसिक लैब में भेजने की बजाय गुजरात सरकार की उस लैब में भेजा था, जहां रिटायरमेंट के 6 साल बाद भी वही डायरेक्टर जमा बैठा है, जिसने इशरतजहां हत्याकांड में अमित शाह एंड कंपनी के मनमाफिक जांच रिपोर्ट दी थी।
 
विधानसभा से भाग रही है सरकार
 
            चौतरफा हमलों और जाहिर उजागर सबूतों से डरी शिवराज सिंह चौहान की सरकार विधानसभा का सामना तक करने से कतरा रही है। भारत के संसदीय लोकतंत्र में ऐसा पहली बार हुआ है, जब विधानसभा का बजट सत्र, बिना बजट और लेखानुदान को पारित किये 6 दिन में ही खत्म हो गया। अब भाजपा सरकार कांग्रेसियों को मनाने, खरीदने, फुसलाने और डराने के सारे हथकंडे अपना रही है। अपने कलुषित अतीत के चलते मुमकिन है कि कांग्रेस इस मसले पर शिथिल पड़ जाये। मगर लगातार हो रहे खुलासोंं, गवाहों और राजदारों की हत्याओं के साथ जो अस्थिपंजर इक_ा हो रहे हैं, वे यकीनन तार्किक अंत तक पहुंचेंगे। शिवराज सिंह को इसी बात का भय है कि उन्हें पता है कि 200 से कम शिक्षकों की नियुक्ति में फंसे हरियाणा के मुख्यमंत्री चौटाला को यदि 10 साल जेल की हवा खानी पड़ सकती है तो इससे कई गुना बड़े मामले में अगर वे फंसे, तो उनका क्या होगा?
 
लोकायुक्त मेहरबान : शिवराज पहलवान
 
            व्यापमं अकेला घोटाला नहीं है। दसियों हजार करोड़ रुपयों के डेढ़ सौ से ज्यादा बड़े घोटाले अब तक सामने आ चुके हैं, जिनमें खुद मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी के अलावा दर्जनों मंत्रियों की लिप्तता रही है। यह बात अलग है कि मध्य प्रदेश के वफादार लोकायुक्त ने हरेक मामले में सरकार को क्लीन चिट दी है। इसी सप्ताह इस लोकायुक्त का कार्यकाल पूरा होने के बाद उसे एक साल का सेवा विस्तार दे दिया गया है। यूं कानून कहता है कि लोकायुक्त की नियुक्ति, मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष समेत गठित की गई समिति को करनी चाहिए। मगर जिस मध्य प्रदेश में व्यापमं चलता है, वहां लोकायुक्त के सेवा विस्तार के लिए सरकार के एक उपसचिव की चि_ी ही काफी मान ली गयी।
            व्यापमं एक ज्यादा बड़ा प्रश्न प्रस्तुत करता है। बाकी भर्तियों को अलग रखकर देखें, तो मेडिकल में भर्ती इंसान की जिंदगी से ताल्लुक रखती है। भारत दुनिया का एकमात्र देश है, जहां मेडिकल कॉलेज में भर्ती के लिए भुगतान कोटे का प्रावधान है। व्यापमं के अलावा भी 40-40 लाख रुपये देकर बिना काबिलियत के डॉक्टर बनने वाले कैसा इलाज करने वाले हैं, यह बाजारू अर्थव्यवस्था के ढिंढोरचियों से पूछा जाना चाहिए।
            पूछा तो भाजपा से भी जाना चाहिए कि भ्रष्टाचार-मुक्त भारत के उसके नारे का क्या हुआ? मगर अब जब हर रोज नया भाजपाई भ्रष्ट करतब सामने आ रहा है, तो इस प्रश्न का कोई अर्थ नहीं रह गया है। 0
 
बड़े षड्ïयंत्र का हिस्सा हैं मौतें—सीपीआइ (एम)
 
एक के बाद एक करके लगातार हो रही व्यापमं से जुड़े गवाहों, राजदारों की मौतों को सीपीआइ (एम) के मध्य प्रदेश राज्य सचिवमंडल ने एक बड़ी साजिश का हिस्सा बताया है। पार्टी के अनुसार व्यापमं आजाद भारत के सबसे योजनाबद्घ घोटाले और उससे जुड़ी मौतें एक सुगठित षड्यंत्र के रूप में सामने आयी हैं। किसी अपराध को छिपाने और उसमें फंसे बड़े मुजरिमों को बचाने के लिए इतना निर्लज्ज और वीभत्स और चुनिंदा सफाई अभियान तो तानाशाहों के कार्यकाल में भी नहीं चला था, जितना दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में लगातार जारी है।
सीपीआइ (एम) राज्य सचिवमंडल के अनुसार इस व्यापकतम घोटाले के ढेर पर धूनी रमाये बैठी एसआइटी और एसटीएफ जैसी जांच एजेंसियां अपना औचित्य खो चुकी हैं। इनकी तफ्तीश से कुछ नहीं निकलने वाला—इनका एकमात्र काम मुख्यमंत्री, भाजपा और आरएसएस के शीर्ष नेताओं को बचाने भर का बचा है। लिहाजा फौरन से पेश्तर, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआइ को यह जिम्मा सौंपा जाना चाहिए। प्रकरण में बंदी बनाये गए तथा जेलों में असुरक्षित पड़े, किसी हत्यारे का जोखिम झेलने की आशंका से त्रस्त सभी बच्चों और परिजनों को जमानत दी जानी चाहिए और बिना किसी लिहाज के घपले में मुख्यमंत्री सहित उच्च पदोंवाले जितने भी नाम आये हैं, उन्हें जेल भेजा जाना चाहिए वरना हत्याओं की यह मुहिम जारी रहने वाली है।
सीपीआइ (एम) के अनुसार गृह मंत्री बाबूलाल गौर का बयान कि मौत तो आनी है, जेल में आये या रेल में  हतप्रभ करने वाली हेकड़ी,  बददिमागी और असंवेदनशीलता का परिचायक है। उनके अनेक ताजे बयान उनकी अस्थिर मन:स्थिति की पोल खोलते रहे हैं, मगर इस बयान ने तो सारी सीमाएं ही लांघ दी हैं। सरकार को उनके बयान पर माफी मांगनी चाहिए और यह सही समय है, जब उनसे इस्तीफा लेकर उन्हें विश्राम पर भेज दिया जाना चाहिए। वैसे सामान्य नैतिकता का तकाजा तो यह है कि मुख्यमंत्री को खुद इस्तीफा देना चाहिए। सीपीआइ (एम) इस सवाल को लेकर पिछले दो वर्षों में तीन प्रदेशव्यापी आंदोलन कर भी चुकी है।
 
नोट – पिछले दो दिन के भीतर-भीतर अक्षय सिंह, टी.वी.टुडे के संवाददाता का दिल का दौरा पड़ने और डॉ. अरुण शर्मा जोकि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कालेज, जबल पुर के डीन की भी सदिग्ध मौत हुयी.